सुभद्राकुमारी चौहानांच्या 'ठुकरा दो या प्यार करो' या कवितेचा मी भावानुवाद केला आहे.
देवा तुझे भक्त तुझ्या दारी अनेक प्रकारे येती |
देवा तुझे भक्त तुझ्या दारी अनेक प्रकारे येती |
तव सेवेस्तव अनेकरंगी वस्तू आणती |
सजूनिया वाजत गाजत तुझ्या मंदिरी ते येती |
सुवर्णरत्नासम मूल्यवान वस्तू तुला अर्पिती |
मी एक गरीब काही हि न घेवून आलो |
तरीही साहस करुनी पुजेस उभा राहिलो |
धूप दीप नैवेद्य नसे अन बहुरंगी आरास नसे |
चरणी तुझ्या वाहण्यास फुलांचा हारही नसे |
गुणगानास्तव तुझिया स्वरात माधुर्य नसे |
सांगण्यास भाव मनीचे वाणीचे चातुर्य नसे|
नसे दान अन नसे दक्षिणा रिकाम्या हातीच आलो|
न ठाऊक पूजाविधी तरीही तुझ्या दर्शनास आलो |
पूजाविधी न ठाऊक मजला ठेवतो मन तुझ्या चरणी |
दान दक्षिणा नसे परंतु भक्ती तुझी असे सतत मनी |
पूजाविधी न ठाऊक मजला ठेवतो मन तुझ्या चरणी |
दान दक्षिणा नसे परंतु भक्ती तुझी असे सतत मनी |
तव प्रेमाचे तहानलेले हृदय घेवूनीया आलो |
एवढेच आहे मजपाशी तेच अर्पिण्यास आलो |
चरणी तुझ्या अर्पितो मन यापरते काय सांगू |
हे तर तुझीच देणगी कर याचा स्वीकार प्रभू |
©परिमल विश्वास गजेंद्रगडकर
२२ / ०५ /२०११
मूळ कविता पुढीलप्रमाणे
ठुकरा दो या प्यार करो
देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी
धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं
कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी
पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो
मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ
चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी
धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं
कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी
पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो
मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ
चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो